आचार्य श्रीरामेश ने महावीर की देशना को आगम सम्मत जीया और जीने की प्रेरणा दी— प्रीति
Report By: Desk | 06, Jan 2025
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जावद । रविवारीय समता शाखा में महतम नंदन अभियान के तहत रतलाम की सुश्राविका प्रीति मूणत ने साधना के शिखर पुरुष आचार्य श्रीरामेश के संयमी जीवन के 50वर्ष की पूर्णता पर उनके संयमी जीवन की अनुमोदना करते हुए उत्कृष्टता के अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किए । साधुमार्गी जैन संघ जावद की आचार्य हुकमीचंद स्मृति भवन में आयोजित धर्म सभा में उपस्थित श्रावक श्राविकाओं को संबोधित करते हुए प्रीति मूणत ने कहा भगवान महावीर की वर्तमान परम्परा में आचार्य श्रीरामेश ने भगवान महावीर की देशना को उनके बताए आगम सम्मत तरीके से जीया व जीना सिखाया । मोक्ष मार्ग तक पहुंचने हेतु भगवान महावीर की देशना को सही रूप में जन मानस के समक्ष रखा ।
    आचार्य श्रीरामेश के संयमी जीवन के 50वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं । उनका संयमी जीवन एक गुरु के प्रति अनन्य समर्पण वाले संत व एक अत्यंत परिश्रमी संयम के प्रति कठोर किंतु हृदय से कोमल व उदार चरित्र वाले आचार्य के रूप में विद्यमान हैं। उनकी पचास वर्ष की साधना ने संघ को नई दिशा दी है।धर्म प्रभावना परम्परागत न रह कर अर्थ पूर्ण हो गई है
 आज श्रीसंघ व चरित्र नायक संत सति ,श्रावक श्राविकाएं अपने आचार्य भगवन के संयमी जीवन की उत्कृष्टता से अभिभूत हैं। यह महोत्सव एक महापुरुष के सफल जीवन के शोध प्रेरणा व पालना का अवसर बन गया है। मूणत ने कहा आचार्य भगवन ने श्रावक श्राविकाओं के आध्यात्मिक जीवन में बड़ा परिवर्तन ला दिया हैं। धर्म क्रियाएं पहले बुजुर्गों का विषय रहा। आज बच्चों युवाओं की गहरी रुचि का विषय बन रहा है। इन धर्म उपासना स्थलों पर सामयिक स्वाध्याय संवर में साधकों को बढ़ती संख्या इसका प्रमाण हैं। गुरुवर के सानिध्य में आयोजित अभिमोक्षम शिविर में देश भर के दो हजार से अधिक बालको की स्थिति एक बड़े बदलाव की पृष्ठ भूमि हैं आज श्रावक श्राविकाऐ धर्म अवसरों की परम्परा से नहीं ज्ञान ध्यान को समझ कर स्वीकार कर आगे बढ़ रहे हैं। ज्ञानवान व क्रियावान श्रावक श्राविकाओं की नई पीढ़ी का निर्माण हो रहा है। निरंतर विभिन्न शिविरों में शिविरार्थी धर्म चिंतन की शास्त्र सम्मत अवधारणाओं को अंगीकार कर प्रशिक्षित हो रहे हैं।
मूणत ने कहा अवधारणा रही है कि धर्म में रुचि कम हो रही है किंतु आचार्य भगवन के अतिशय का प्रताप है कि निरंतर नए युवक युवतियां कठोर संयमी जीवन को स्वीकार कर दीक्षित हो रहे हैं। त्याग तपस्या व जीवन को संयमित करने की दिशा में श्रावक श्राविकाओं की रुचि बढ़ रही हैं। जैसे समय पांचवे आरे से चौथे आरे की और बढ़ रहा हैं। जीवन की सार्थकता हेतु अपने कर्मों के क्षय व पुण्य संचय हेतु निरंतर गतिविधियां विद्यमान हैं। हम साधुमार्गी जैन संघ के श्रावक श्राविकाए बड़े भाग्यवान हैं कि हमें ऐसे धर्माचार्य जी के अनुयायी होने उनसे प्रेरणा लेने व उनके सानिध्य में धर्म आचरण की प्रेरणा ले कर जीवन धन्य बनाने का अवश्य मिला । गुरुवर के प्रति हमारी श्रद्धा आस्था समर्पण हमारे जीवन को धन्य कर रही हैं। इस दौरान साधना के शिखर पुरुष आचार्य भगवन के संयमी जीवन के अनेक संस्मरण सुनाए ।


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