तथाकथित पत्रकारों की बढ़ती फौज से पेशे की साख पर संकट
जावद। पत्रकारिता कभी समाज का दर्पण थी, लेकिन अब इसका स्तर लगातार गिरता जा रहा है। एक समय था जब पत्रकार की कलम इतनी ताकतवर हुआ करती थी कि उसके लिखे शब्दों से सत्ता हिल जाया करती थी। आज वही पत्रकारिता अनेक तथाकथित पत्रकारों के कारण बदनाम हो रही है।
पत्रकारिता का सुनहरा अतीत और मौजूदा चुनौतियाँ-
देश की आज़ादी के समय पत्रकारिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अखबार और पत्रिकाएँ जन जागरूकता का प्रमुख साधन थीं। लेकिन अब पत्रकारिता की परिभाषा ही बदल गई है। डिजिटल युग में सूचना की क्रांति के साथ-साथ पत्रकारों की संख्या में भी इज़ाफा हुआ है, लेकिन उनमें से कई पत्रकारिता के मूल्यों से कोसों दूर हैं।
तथाकथित पत्रकारों की लंबी कतार-
आज ऐसे पत्रकारों की भीड़ बढ़ती जा रही है, जिनका पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं है। 10वीं फेल लोग खुद को वरिष्ठ पत्रकार बताने लगे हैं। बिना किसी योग्यता और अनुभव के, सिर्फ़ ‘प्रेस’ लिखी गाड़ी लेकर घूमने वालों ने पत्रकारिता की साख पर बट्टा लगा दिया है। ऐसे लोग ब्लैकमेलिंग और अवैध उगाही को ही पत्रकारिता समझ बैठे हैं।
पत्रकारिता बनी धन कमाने का साधन-
कुछ लोगों ने पत्रकारिता को सिर्फ़ पैसे कमाने और रसूख बनाने का जरिया बना लिया है। ये तथाकथित पत्रकार अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर प्रशासन, पुलिस और सरकारी तंत्र पर दबाव बनाने में लगे रहते हैं। अवैध कारोबारियों और भ्रष्ट अधिकारियों से सांठगांठ कर ये पत्रकारिता के नाम पर सिर्फ़ सौदेबाजी करते हैं।
सोशल मीडिया और फेक न्यूज़ का खतरा-
डिजिटल युग में पत्रकारिता और भी प्रभावित हो रही है। फेक न्यूज़ फैलाने का सिलसिला तेज़ हो गया है, जिससे समाज में भ्रम की स्थिति बन रही है। यह प्रवृत्ति समाज और लोकतंत्र दोनों के लिए खतरनाक है।
चौथे स्तंभ को बचाने की जरूरत-
लोकतंत्र के तीन स्तंभों—विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की तरह पत्रकारिता को चौथा स्तंभ माना जाता है। यदि यही स्तंभ भ्रष्टाचार और असत्य की दीमक से खोखला हो जाए, तो पूरे लोकतंत्र पर खतरा मंडराने लगेगा।
पत्रकारिता का मूल उद्देश्य समाज को सत्य दिखाना-
पत्रकारिता का मूल उद्देश्य समाज को सत्य दिखाना है, न कि स्वार्थ सिद्ध करना। आज ज़रूरत है कि सही और ईमानदार पत्रकार आगे आएँ और इस पेशे को फिर से उसकी पुरानी गरिमा लौटाएँ। पत्रकारिता की विश्वसनीयता बचाने के लिए हर स्तर पर चिंतन और सुधार आवश्यक है, ताकि यह पेशा फिर से लोकतंत्र की मज़बूत नींव बन सके।