जया एकादशी...
Report By: | 22, Feb 2021
व्हाट्सऐप चैनल से जुड़े

एकादशी व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठतम माना जाता है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी व्रत रखा जाएगा। इस साल यह तिथि 23 फरवरी 2021 (मंगलवार) को है। मान्यता है कि जया एकादशी के दिन विधि-विधान से पूजा व व्रत रखने भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मां लक्ष्मी अपनी कृपा बरसाती हैं और समस्त कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जया एकादशी के दिन श्रीहरि का नाम जपने से पिशाच योनि का भय नहीं रहता है।

जया एकादशी व्रत पूजा विधि-

1. इस दिन व्रती को सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए।

2. इसके बाद पूजा स्थल को साफ करना चाहिए। अब भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की मूर्ति, प्रतिमा या उनके चित्र को स्थापित करना चाहिए।

3. भक्तों को विधि-विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए।

4. पूजा के दौरान भगवान कृष्ण के भजन और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।

5. प्रसाद, तुलसी जल, फल, नारियल, अगरबत्ती और फूल देवताओं को अर्पित करने चाहिए।

6. पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करना चाहिए।

7. अगली सुबह द्वादशी पर पूजा के बाद भोजन का सेवन करने के बाद जया एकादशी व्रत का पारण करना चाहिए।

 जया एकादशी व्रत कथा-

एक समय में देवराज इंद्र नंदन वन में अप्सराओं के साथ गंधर्व गान कर रहे थे, जिसमें प्रसिद्ध गंधर्व पुष्पदंत, उनकी कन्या पुष्पवती तथा चित्रसेन और उनकी पत्नी मालिनी भी उपस्थित थे। इस विहार में मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित हो गंधर्व गान में साथ दे रहे थे। उसी क्रम में गंधर्व कन्या पुष्पवती, माल्यवान को देख कर उस पर मोहित हो गई और अपने रूप से माल्यवान को वश में कर लिया। इस कारण दोनों का चित्त चंचल हो गया। 

वे स्वर और ताल के विपरीत गान करने लगे। इसे इंद्र ने अपना अपमान समझा और दोनों को श्राप देते हुए कहा- तुम दोनों ने न सिर्फ यहां की मर्यादा को भंग किया है, बल्कि मेरी आज्ञा का भी उल्लंघन किया है। इस कारण तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्युलोक जाकर वहीं अपने कर्म का फल भोगते रहो।

इंद्र के श्राप से दोनों भूलोक में हिमालय पर्वतादि क्षेत्र में अपना जीवन दुखपूर्वक बिताने लगे। दोनों की निद्रा तक गायब हो गई। दिन गुजरते रहे और संकट बढ़ता ही जा रहा था। अब दोनों ने निर्णय लिया कि देव आराधना करें और संयम से जीवन गुजारें। इसी तरह एक दिन माघ मास में शुक्लपक्ष एकादशी तिथि आ गयी। 

दोनों ने निराहार रहकर दिन गुजारा और संध्या काल पीपल वृक्ष के नीचे अपने पाप से मुक्ति हेतु ऋषिकेश भगवान विष्णु को स्मरण करते रहे। रात्रि हो गयी, पर सोए नहीं। दूसरे दिन प्रात: उन दोनों को इसी पुण्य प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई और दोनों को पुन: अप्सरा का नवरूप प्राप्त हुआ और वे स्वर्गलोक प्रस्थान कर गए। 

उस समय देवताओं ने उन दोनों पर पुष्पवर्षा की और देवराज इंद्र ने भी उन्हें क्षमा कर दिया। इस व्रत के बारे में श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं, ‘जिस मनुष्य ने यह एकादशी व्रत किया, उसने मानो सब यज्ञ, जप, दान आदि कर लिए। यही कारण है कि सभी एकादशियों में जया एकादशी का विशिष्ट महत्व है।'


image
नीमच खबर मे आपका स्वागत है। समाचार एवं विज्ञापन के लिऐ सम्पर्क करे— 9425108412, 9425108292 व khabarmp.in@gmail.com पर ईमेल करे या आप हमारे मिनु मे जाकर न्यूज़ अपलोड (Upload News) पर क्लिक करे व डायरेक्ट समाचार अपलोड करे व हमे उसका स्क्रीनशॉट भेजे |