सनातन संस्कृति के सभी व्रतों में विजया एकादशी का व्रत उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के करने मानव के सभी पापों का नाश हो जाता है और सुखों को भोगने के बाद परलोक में मोक्ष की प्राप्ति होती है। विजया एकादशी का व्रत करने से मानव को विजय का वरदान मिलता है और उसको शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है। इसलिए शास्त्रों में विजया एकादशी के व्रत का बड़ा महत्व बतलाया गया है। विजया एकादशी को संकटों का नाश करने वाली एकादशी कहा गया है।
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है। इसके दो दिन बाद महाशिवरात्रि का पर्व आता है। शास्त्रोक्त मान्यता यह है कि विजया एकादशी के दिन श्रीराम ने लंका विजय के लिए समुद्र किनारे पूजा की थी। श्रीराम को महर्षि वकदालभ्य ने अपने सेनापतियों के साथ विजया एकादशी का व्रत करने के लिए कहा था।
विजया एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठ जाएं। स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और एकादशी के व्रत का संकल्प लें। एक पाट पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें । एक कलश की स्थापना करें। श्रीहरी की मूर्ति है तो उसको पंचामृत से स्नान करवाएं। भगवान विष्णु का कुमकुम, हल्दी, मेंहदी, पीले फूल आदि से पूजन करें। पंचामृत, पंचमेवा, ऋतुफल, मिठाई आदि का भोग लगाएं। शाम के समय भगवान श्रीहरी की आरती उतारने के बाद फलाहार लें। संभव हो तो रात्रि जागरण करें और इस दिन जरूरतमंदों को दान दें। ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और इसके बाद व्रत का पारण करें।