भागवत कथा के दौरान हुआ तुलसी विवाह
जावद। धर्मनगरी वृंदावन मे श्री वैष्णव भक्त मंडल द्वारा करवाई जा रही के श्रीमद्भागवत कथा में तुलसी-शालिग्राम विवाह किया गया। कथाव्यास पं. अशोक भारद्वाज ने तुलसी विवाह की उपकथा विस्तार से सुनाई। कथाव्यास ने बताया कि श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार प्राचीन काल में जलंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर और पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह विजयी बना हुआ था। जलंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए और रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया। यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। जिस जगह वृंदा सती हुई वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। विष्णु ने कहा, हे वृंदा, यह तुम्हारे सतीत्व का फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा। बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है। तुलसी और शालिग्राम का विवाह मंदसौर में निवासरत रुकमणी उपाध्याय परिवार की और से संपन्न हुआ। कथा स्थल पर उपस्थित धर्मप्रेमी जनता ने भगवान के जयकारे लगाये व संगीतमय भजनो पर खूब नाचे। इस दौरान बड़ी संख्या मे जावद नगर सहित आसपास ग्रामीण क्षेत्र की 250 से ज्यादा धर्मप्रेमी जनता मौजुद रही ।