नागपंचमी के मौके पर उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य शिखर के दूसरे खंड पर स्थित भगवान नागचन्द्रेश्वर मंदिर के पट सोमवार मध्यरात्रि खुल गए। सबसे पहले महाकालेश्वर मंदिर स्थित पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनीत गुरु द्वारा त्रिकाल पूजन किया गया। इस दौरान प्रशासनिक अधिकारी भी मौजूद रहे। यह मंदिर साल में केवल एक बार नागपंचमी पर 24 घंटे के लिए ही खुलता है। सिर्फ इसी दिन मंदिर की दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन आम श्रद्धालुओं को होते हैं। भारतीय पंचांग तिथि अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन ही मंदिर के पट खुलने की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है।
अदभुत है नागचंद्रेश्वर भगवान की प्रतिमा
महाकाल मंदिर में स्थित नागचंद्रेश्वर भगवान की प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है। इस प्रतिमा में फन फैलाए हुए नाग के आसन पर शिव जी के साथ पार्वती देवी बैठी हैं। संभवत: दुनिया में यह एक मात्र ऐसी प्रतिमा है, जिसमें शिव जी नाग शैय्या पर विराजित हैं। इस मंदिर में शिवजी, मां पार्वती, गणेश जी के साथ ही सप्तमुखी नाग देव हैं। साथ में दोनों के वाहन नंदी और सिंह भी विराजित हैं। भगवान शिव के गले और भुजाओं में भी नाग लिपटे हुए हैं।
नागचंद्रेश्वर प्रतिमा का इतिहास
यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। बताया जाता है कि दुर्लभ प्रतिमा नेपाल से लाकर मंदिर में स्थापित की गई थी।
पुल बनने से सुगम दर्शन
नागचन्द्रेश्वर मंदिर करीब 60 फीट की ऊंचाई पर है। मंदिर के दरवाजे बहुत ही छोटे होने के साथ साथ अस्थाई रूप से लगाई जाने वाली सीढ़ियों का रास्ता भी संकरा रहता था और झुक कर जाना पड़ता था। इसस वजह से यहां एक समय में एक ही दर्शनार्थी दर्शन कर सकता था। मंदिर के स्ट्रक्चर की जांच के लिए आए केंद्रीय भवन अनुसंधान रूड़की के दल ने मंदिर से सटाकर लगे लोहे के चढ़ाव को हटाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद 30 जून 2022 को केंद्रीय भवन अनुसंधान रूड़की की अनुमति के बाद नया ब्रिज तैयार कर श्रद्धालुओं के लिए सुगम दर्शन की व्यवस्था शुरू की गई।