नीमच। संसार के सभी कार्य धर्म में प्रवत होकर करना चाहिए तभी सफलता मिलती है धर्म की मर्यादा के साथ कार्य करेंगे तो पाप से दूर रहेंगे और पुण्य का लाभ मिलेगा मनुष्य वर्तमान में जीना सीखे तभी वह सुखी हो सकता है छोटी सी जिंदगी है और अरमान बड़े बड़े हैं अपने अरमानों को संक्षिप्त करें तो जीवन सफल हो सकता है यह बात दिगंबर जैन समाज के मुनि महाराज समाधि सम्राट आचार्य अभिनंदन सागर जी महाराज के आज्ञा अनुवर्ती शिष्य आचार्य अनुभव सागर महाराज ने कही वे शुक्रवार सुबह 10 बजे दिगंबर जैन मंदिर में दिगंबर जैन समाज द्वारा आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे उन्होंने कहा कि धर्म का कार्य चाहे कम हो लेकिन काम का हो तभी लाभ मिल पाता है धर्म में रहकर पुरुषार्थ करें तो फल मिलता ही है पुण्य बढ़ता है लोग संसार के लिए तो मेहनत करते हैं लेकिन धर्म क्षेत्र में पुरुषार्थ नहीं करते हैं और पुण्य फल में आगे कैसे बढ़ेंगे पुण्य और पाप का परिणाम अलग-अलग होता है धर्म क्षेत्र में पुरुषार्थ नहीं करे तो धर्म अर्थ काम मोक्ष में पीछे रह जाएंगे द्रव्य परिवर्तनशील होता है हम तत्वार्थ सूत्र के अनुसार वास्तविक रूप को जान नहीं पाते हैं और हम द्रव्य के प्रति आकर्षित होकर विरक्त हो जाते हैं हम बहुत अध्ययन नहीं करें बहुत बार अध्ययन करें तो हमें जीवन में सफलता मिल सकती है हम तो 100 कार्य कार्य 1% करते हैं जबकि एक कार्य सो प्रतिशत करें तो सफलता अवश्य मिलेगी चोरी करना पाप है पहले स्वयं आत्मसात करें फिर बच्चों को संस्कार की शिक्षा दें तभी वह संस्कार बच्चों में आएगा कि माता-पिता स्वयं मोबाइल चलाना छोड़े फिर बच्चों को संस्कार सिखाए मोबाइल नहीं चलाना है तो उसका प्रभाव ज्यादा होगा झूठ बोलना पाप है पहले माता-पिता स्वयं सच बोले फिर बच्चों को संस्कार सिखाएं तभी वह ज्ञान और संस्कार सार्थक सिद्ध हो सकता है बच्चे जैसे माता-पिता को देखते हैं वैसे ही सीखते हैं बच्चों के माता-पिता प्रथम गुरु होते हैं इसलिए माता-पिता स्वयं में सुधार लाए तो बच्चे मैं भी सुधार आ सकता है सबसे ज्यादा चरित्र प्रभाव डालता है इसलिए अपने चरित्र को अच्छा रखना चाहिए आजकल लोग साधु महात्मा संतों की तरफ कम और व्हाट्सएप आचार्य के दर्शन दिन-रात कर रहे हैं चिंतन का विषय है जब तक जेब में पैसे हैं तो रिश्ते नाते सब फेल हो गए हैं हमने स्वयं अगर गलत कर्म किए हैं तो उसकी सजा अवश्य मिलती है इसका में चिंतन करना होगा इस अवसर पर आचार्य अनुभव सागर वैराग्य सागर स्वयं सागर अनुकरण सागर अनुसरण सागर आर्यका सिद्धार्थ मति माताजी सुलेखा मति माताजी आदि 7 का सानिध्य मिला।