मंदसौर। जिले की दाे बेटियों का मॉडल राज्य स्तर पर सराहा गया। गांव नैनाेरा की भूमिका पाटीदार ने रेलवे ट्रैक क्रैक डिटेक्टिंग डिवाइस बनाया। इसमें लगा सेंसर ड्रोन कैमरे की सहायता से रेलवे ट्रैक पर क्रेक की जांच आसानी से कर सकता है। इसी तरह गांव भूखी की गवरा गुर्जर ने खाद्य सुरक्षा यंत्र बनाया। यह घर सहित वेयर हाउस में रखे अनाज को कीट व चूहों से सुरक्षित रखता है। दोनों ने मॉडल खुद के खर्च व आइडिया पर तैयार किए हैं।
इंस्पायर अवाॅर्ड के जिला नोडल अधिकारी लोकेंद्र डाबी ने बताया भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी द्वारा बच्चों में वैज्ञानिक मानसिकता विकसित करने के लिए स्कूल, डिस्ट्रिक्ट, स्टेट व नेशनल स्तर पर प्रतिभाएं तैयार की जा रही हैं। मॉडल बेहतर होने पर उन्हें इंस्पायर अवाॅर्ड दिया जाता है। स्कूल स्तरीय इंस्पायर अवाॅर्ड के लिए जिले के 162 स्कूलों ने भाग लिया। इसमें से 49 स्कूलों का चयन जिला स्तर पर हुआ। इसमें केंद्रीय विद्यालय की कक्षा 10वीं में अध्ययनरत छात्रा भूमिका पाटीदार और शासकीय मिडिल स्कूल भूखी में कक्षा अाठवीं की छात्रा गवरा गुर्जर द्वारा बनाए विज्ञान माॅडल को राज्य स्तर पर सराहा गया। ये मॉडल नेशनल इंस्पायर अवाॅर्ड स्पर्धा में रखे जाएंगे।
गवरा ने बताया खाद्यान्न को चूहों एवं अन्य कीटों से बचाने के लिए यंत्र बनाया है। इसमें आवृत्ति की 20 किलो हर्टज आवाज उत्पन्न होती है। यह मनुष्य को सुनाई नहीं देती है। यह यंत्र वाइब्रेशन करता है। इससे चूहों के साथ ही अन्य जीव भाग जाते हैं या नष्ट हो जाते हैं। यंत्र का उपयोग घरों, सरकारी एवं गैर सरकारी गोदामों में खाद्यान्न सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसका उद्देश्य खाद्यान्न को सुरक्षित रखना, चूहों एवं अन्य कीटों द्वारा संक्रमित होने वाली बीमारियों से बचाव, विषाक्त खाद्यान्न से होने वाली क्षति से बचाव करना है। यंत्र को बनाने के लिए 2 हजार रुपए खर्च करने पड़े। इसे बनाने में करीब दो सप्ताह का समय लगा।
अल्ट्रासाेनिक साउंड से ट्रैक के क्रैक काे जान सकते हैं
भूमिका ने बताया 6000 किमी के रेलवे ट्रैक की सुरक्षा के लिए रेलवे ट्रैक मैन नियुक्त करता है। कई बार ट्रैकमैन भी हादसे का शिकार हो जाते हैं। इस पर ट्रैक की हादसाें काे राेकने का उपाय दिमाग में अाया। इस डिवाइस में ड्रोन की सहायता ली गई है। ड्रोन में प्रयोग किए गए अल्ट्रासाेनिक सेंसर से अल्ट्रासाेनिक साउंड ट्रैक से टकराकर पुन: ड्रोन कैमरे पर पहुंचता है। इसकी सहायता से कम्प्यूटर पर प्रतिबिंब बनाया जा सकता है। इससे ट्रैक में क्रैक को पहचाना जा सकता है। यह कार्य कम समय और आसानी से पूरा होता है। इस टेक्नोलाॅजी को हर मौसम में प्रयोग किया जा सकता है। डिवाइस बनाने के लिए 6 हजार रुपए का खर्च आया।