नीमच। परम पूज्य उदय मुनि महाराज का संथारा सहित कालधर्म शनिवार की रात 11:46 बजे हो गया। रविवार को स्थानक में उपाध्याय रविंद्रमुनि, रमणीक मुनि, ऋषभ मुनि, सत्येंद्र मुनि, पुनित मुनि, अर्हम मुनि, सुभद्र मुनि, दीपेश मुनि एवं साध्वी कैलाशवती, ओमप्रभा, पदमप्रभा, समता, डॉक्टर सरिता, सुरभि आदि साधु-साध्वियों की उपस्थिति में दिल्ली के सभी संघों के पदाधिकारियों ने शाल उड़ाकर अंतिम विदाई दी।
चकडोल यात्रा प्रातः 11:30 बजे प्रारंभ हुई, जिसमें एक रथ बनाकर मुनि की देह को रखा गया। अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबियों ने भाग लिया और मुक्तिधाम ले जाया गया, जहां उनके सांसारिक पुत्रों भारत, पंकज एवं राजेंद्र जारोली ने मुखाग्नि दी एवं उपस्थितजनों ने श्रद्धासुमन अर्पित किए।
जीवन परिचय -
उदय मुनि का जन्म 16 मार्च 1937 को बड़ी सादड़ी, राजस्थान में हुआ था। संघ नीमच के करीब 25 वर्षों तक महामंत्री रहे। जिनवाणी एवं श्रमणोपासक जैन पत्रिकाओं में मान्य लेखक रहे और कई गोशालाओं के अध्यक्ष भी रहे।
अखिल भारतीय कृषि गोसेवा संघ वर्धा में पहले छह वर्षों तक महामंत्री और फिर दीक्षा तक कार्याध्यक्ष रहे। मध्य प्रदेश गोसेवा आयोग में कार्यकारिणी सदस्य रहे। केंद्रीय सरकार द्वारा गठित भारतीय गोवंश आयोग, नई दिल्ली में विधि विशेषज्ञ रहे एवं विधि संबंधी 300 पृष्ठों का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। गोवंश को कत्लखानों में जाने से रोकने, पुलिस कार्यवाही करवाने एवं उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों में याचिकाएँ लगाकर हजारों गाय, बैल, बछड़ों के जीवन को बचाने में सक्रिय भूमिका निभाई।
श्रवण संघीय चतुर्थ पट्टधर आचार्य सम्राट शिवमुनि महाराज की आज्ञा से राजस्थान प्रवर्तिनी यशकुंवर महाराज द्वारा भीलवाड़ा में 25 नवंबर 2002 को शीतल गच्छ में दीक्षित किए गए। दीक्षा के एक वर्ष बाद चार विगयों और नमक का आजीवन त्याग किया। चाँदनी चौक, दिल्ली में 2011 के चातुर्मास के बाद पांचों विषयों का त्याग कर दिया।
सिंगोली, बड़ी सादड़ी, जयपुर, दिल्ली, जम्मू, अजमेर, उदयपुर सहित विभिन्न स्थानों पर भव्य चातुर्मास संपन्न किए। गृहस्थ अवस्था में अहिंसा की सेवा हेतु आचार्य हस्ती अवार्ड प्राप्त किया। विभिन्न संघों द्वारा आगम निधि, पंडित रत्न, आगम रत्नाकर की उपाधियाँ दी गईं। आचार्य सम्राट द्वारा प्रज्ञा महर्षि के विशिष्ट अलंकार से विभूषित किए गए।