जावद। होली पर्व मार्च मे है लेकिन प्रकृति ने इसकी तैयारी वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही कर ली थी। जंगल में पलाश के फूल बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने लगे हैं। जंगल का भीतरी वातावरण इन दिनों ऐसा लगने लगता है मानो पेड़ में किसी ने दहकते अंगारे लगा रखा हो। आमतौर पर वसंत ऋतु के समय यह फूल खिलने लगता है। होली के आसपास यह फूल चरम पर आकर जंगल की खूबसूरती में चार चांद लगा जाता है। अभी देश व विदेशों में चीन से फैले कोरोना वायरस के दहशत के कारण होली पर लोग रंग.गुलाल खेलने से परहेज का फरमान जारी कर रहे है।
टेसू के फूल से ही बनते थे रंग— आज भले ही हम केमिकल युक्त रंग.गुलाल से होली का पर्व मनाते हैं, लेकिन एक समय था जबकि हमारे पूर्वज टेसू के फूल से ही रंगोत्सव मनाया करते थे। इसके लिए पलाश का फूल को होली से एक दिन पहले एकत्र कर उसे मिट्टी के पात्र में रख कर गरम किया जाता था और इससे प्राकृतिक रंग तैयार होता था। अब जमाना बदल गया है। त्योहारों की तैयारी भी अब महज एक दिन तक सिमट गई है।
कोरोना को देखते पलाश की बढ़ी मांग— कोरोना वायरस को देखते हुए एक ओर जहां लोग केमिकल रंग का उपयोग करने से बच रहे हैं, वहीं होली का पर्व मनाने का भी उत्साह है। ऐसे में लोग अब पुरानी परंपरा की ओर लौट रहे हैं। पलाश के फूल का संग्रह कर इसका प्राकृतिक रंग तैयार करने होली का पर्व मनाने की योजना में कई ग्रामीण व संपन्न परिवार बना रहे हैं। लिहाजा पलाश की मांग बढ़ गई है। जानकारी अनुसार पलाश के फूल एकत्रित करने श्रमिक भेजकर जंगल से यह फूल बोरियों में मंगाया गया है और इससे रंग बनाए जा रहे हैं।
एेसे बनता है रंग— आपको बता दें कि सेमल और पलाश के फूल को सुखाकर चूर्ण बनाया जाता है। इस चूर्ण को कुछ देर के लिए पानी में डालकर छाना जाता है जिससे पानी लाल हो जाता है। इसके चूर्ण को गेंदे और अपराजिता के फूल के चूर्ण के साथ मिलाकर पीसा जाता है और यह मिश्रण प्राकृतिक अबीर बन जाता है।
औषधीय गुण भी कम नहीं— आपको बता दें कि पलाश औषधीय गुणों से भरपूर होता है। पलाश के छाल को उबालकर सेवन करने से पथरी और यकृत रोग दूर होते हैं। सेमल का पुष्प ही नहीं वरन पंचांग शक्तिवर्धक होते हैं। पाचनतंत्र को ठीक रखने के साथ ही सेमल मधुमेह के लिए उपयोगी है। पलाश के तने के रेशे से बनी रस्सी काफी मजबूत होती है। इसके पत्ते से बने दोने और पत्तल कभी वर्ग विशेष की आजीविका के प्रमुख साधन रहे हैं।